हर तरफ शोर है , ज़िन्दगी कहीं खामोश है ,
बदलते वक़्त की तस्वीर है ,
कुछ नये लोग , नयी भाषा है ,
तहज़ीब के मिटने लगे अब कुछ निशां हैं ,
छिन गया है सुकून परिंदों का भी ,
अब बचने वाला कहाँ इन्सां है !!
मेरे शहर की गलियां बहुत तंग हैं !!
ज़िन्दगी इतनी व्यस्त है , न किसी के पास वक़्त है ,
जाने कौन छीन ले गया है खुशियाँ हमसे ,
उम्मीद लगाई थी जिस बाप ने अपने बेटे से ,
वो अब जाते हैं काम पे अपने RETIREMENT के बाद से ,
घर तो बना लिए बड़े , लोगों ने अपने यहाँ ,
लेकिन ये दिल क्यूँ इतना छोटा हो गया , मेरे शहर के लोगों का ,
स्कूल जाते बच्चे , कहीं बूढ़े-बुजुर्ग देर तक किनारे खड़े रहते हैं ,
कौन उनकी उँगलियों को पकड़े , कौन उनको रास्ता पार कराये !!
मेरे शहर की गलियां ही नहीं , अब तो दिल भी बहुत तंग हो गये हैं !!
कौन उनकी उँगलियों को पकड़े , कौन उनको रास्ता पार कराये !!
मेरे शहर की गलियां ही नहीं , अब तो दिल भी बहुत तंग हो गये हैं !!
हर तरफ शोर है जिंदगी कहीं खामोश हैं .. बदलते वक्त की तकदीर है ... बहुत बिंदास भावपूर्ण रचना ... बधाई
ReplyDeletedhanyawad...
Deleteआज के जीवन का कटु सत्य....बहुत सुंदर प्रभावी रचना...
ReplyDeleteji...aabhar...
Deleteaaj ki sachhai vyakt ki hain aapne , badhai
ReplyDeletedhanyawad...
Deleteगलियां तो मेरे शहर की भी तंग हैं पर सड़कें चौड़ी हैं.
ReplyDeleteshkriya...lekin shayad aap rachna ka bhaw nhi samjh paye...???
Deleteगालियाँ तंग हैं और शायद लोगो के मन भी ....
ReplyDeleteji...maine bhi isi bhawna ko vyakt karne ki koshish kari hai...dhanyawad...
Deleteकड़वा सच है हमारे समाज का.....
ReplyDeleteगहन रचना
अनु
aabhar anu ji...
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