Saturday 28 April 2012

मेरे शहर की गलियां बहुत तंग हैं !


मेरे शहर की गलियां बहुत तंग हैं  !!

हर तरफ शोर है , ज़िन्दगी कहीं खामोश है ,
बदलते वक़्त की तस्वीर है , 
कुछ नये लोग , नयी भाषा है ,
तहज़ीब के मिटने लगे अब कुछ निशां हैं ,
छिन गया है सुकून परिंदों का भी ,
अब बचने वाला कहाँ इन्सां है !!

मेरे शहर की गलियां बहुत तंग हैं  !!

ज़िन्दगी इतनी व्यस्त है , न किसी के पास वक़्त है ,
जाने कौन छीन ले गया है खुशियाँ हमसे ,
उम्मीद लगाई थी जिस बाप ने अपने बेटे से ,
वो अब जाते हैं काम पे अपने RETIREMENT के बाद से ,
घर तो बना लिए बड़े , लोगों ने अपने यहाँ ,
लेकिन ये दिल क्यूँ इतना छोटा हो गया , मेरे शहर के लोगों का ,
स्कूल जाते बच्चे , कहीं बूढ़े-बुजुर्ग देर तक किनारे खड़े रहते हैं ,
कौन उनकी उँगलियों को पकड़े , कौन उनको रास्ता पार कराये !!


मेरे शहर की गलियां ही नहीं , अब तो दिल भी बहुत तंग हो गये हैं !!

12 comments:

  1. हर तरफ शोर है जिंदगी कहीं खामोश हैं .. बदलते वक्त की तकदीर है ... बहुत बिंदास भावपूर्ण रचना ... बधाई

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  2. आज के जीवन का कटु सत्य....बहुत सुंदर प्रभावी रचना...

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  3. aaj ki sachhai vyakt ki hain aapne , badhai

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  4. गलियां तो मेरे शहर की भी तंग हैं पर सड़कें चौड़ी हैं.

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    1. shkriya...lekin shayad aap rachna ka bhaw nhi samjh paye...???

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  5. गालियाँ तंग हैं और शायद लोगो के मन भी ....

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    1. ji...maine bhi isi bhawna ko vyakt karne ki koshish kari hai...dhanyawad...

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  6. कड़वा सच है हमारे समाज का.....
    गहन रचना

    अनु

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