बहुत कुछ देखा है घर की इन दीवारों ने ,
हँसी - ठहाकों की गुँजे कभी , और ग़मों का सैलाब कभी !
बच्चोँ की किलकारी , कभी माँ का प्यार दुलार ,
भाई बहनों के झगड़े और पिता से टकरार कभी ,
दोस्तों का आना जाना , कभी नये रिश्तों को निभाना ,
दो अजनबी जिस्मों का , एक रूह में समा जाना कभी ,
बहुत कुछ देखा है घर की इन दीवारों ने !
लेकिन ये दीवारें भी कब तक जवां रहती ,
वक़्त के साथ ये बूढ़ी हो गईं , एक इंसान के जिस्म की तरह ,
जर्जर हो चुकी छतों से अब धूप भी छन - छन के आने लगी ,
ये घर अब घर नहीं खंडहर सा हुआ दिखाई देता है ,
लेकिन कभी कोई शिकायत नहीं की इन दीवारों ने ,
ये खुले किवाड़ अब भी बुलाते हों जैसे किसी को ,
कि आके थाम ले कोई हाथ इनका ,
छुए प्यार से और फिर से जान डाल दे इनमे ,
इन दरों -दीवार की हालत अब ऐसी हो गयी हो जैसे ,
घर का कोई बुज़ुर्ग लेटा पड़ा हो ,
आख़िरी साँसे लेता हो जैसे बिस्तर पर ,
बहुत कुछ देखा था कभी घर की इन दीवारों ने !!
~ ♥ कल्प वर्मा ♥ ~