Friday, 18 March 2016

~ बहुत कुछ देखा है घर की इन दीवारों ने ~



बहुत कुछ देखा है घर की इन दीवारों ने ,
हँसी - ठहाकों की गुँजे कभी , और ग़मों का सैलाब कभी !
बच्चोँ की किलकारी , कभी माँ का प्यार दुलार ,
भाई बहनों के झगड़े और पिता से टकरार कभी ,
दोस्तों का आना जाना , कभी नये रिश्तों को निभाना ,
दो अजनबी जिस्मों का , एक रूह में समा जाना कभी ,
बहुत कुछ देखा है घर की इन दीवारों ने !

लेकिन ये दीवारें भी कब तक जवां रहती ,
वक़्त के साथ ये बूढ़ी हो गईं , एक इंसान के जिस्म की तरह ,
जर्जर हो चुकी छतों से अब धूप भी छन - छन के आने लगी ,
ये घर अब घर नहीं खंडहर सा हुआ दिखाई देता है ,
लेकिन कभी कोई शिकायत नहीं की इन दीवारों ने ,
ये खुले किवाड़ अब भी बुलाते हों जैसे किसी को ,
कि आके थाम ले कोई हाथ इनका ,
छुए प्यार से और फिर से जान डाल दे इनमे ,
इन दरों -दीवार की हालत अब ऐसी हो गयी हो जैसे ,
घर का कोई बुज़ुर्ग लेटा पड़ा हो ,
आख़िरी साँसे लेता हो जैसे बिस्तर पर ,
बहुत कुछ देखा था कभी घर की इन दीवारों ने !!
~ ♥ कल्प वर्मा ♥ ~

Saturday, 20 June 2015

INTERNATIONAL YOGA DAY 21-06-2015

INTERNATIONAL YOGA DAY 21-06-2015



ये एक अच्छी शुरुआत है
इसकी सराहना करता हूँ
लेकिन ये महज एक " दिन " बनकर न रह जाय इसका मुझे डर है
कल 21  JUN  को जितने लोग योग करेंगे मुझे लगता है उसका महज़ 1 % लोग ही शायद 22 JUNE  या उसके बाद इसे अपने दैनिक दिनचर्या में शामिल करेँगे
वैसे तो में भी योग करता हूँ लेकिन " प्रतिदिन " पालन नहीं कर पाता
ये वास्तव में अपने शरीर को निरोगी एवं चुस्त दुरुस्त रखने के लिए आवश्यक है
तो मेरे सभी मित्रों भाई बंधुओं से अनुरोध है कि वो कल 21 JUN को इस अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस में सम्मिलित हों और अपने देश का गौरव बढ़ाएं एवं खुद को भी स्वस्थ रखें
और केवल कल ही क्यों
इसे अपने दैनिक दिनचर्या में शामिल भी करें
धन्यवाद

कल्प नारायण वर्मा

Tuesday, 10 June 2014

" चलो ज़िन्दगी को तलाश करें "



हथेलियों से सरक के खो गए कई लम्हें ,
चलो उनकी तलाश करें ,
टूट कर बिखर गए है जो ख़्वाब ,
चलो उनकी एक पोटली बनाएं ,
फिर किसी दरिया , समन्दर किनारे चलें ,
डूबते सूरज तले कहीं इन्हें भी दफना दें !!

फिर ज़िन्दगी के पार कहीं ज़िन्दगी की तलाश करें ,
चलो हर हँसी के पीछे छुपे दर्द की तलाश करें ,
सुनहरे सपनों में कभी , तो कभी , करवटों में गुज़रती रात ,
हर शख़्श में अपनी परछाई तलाश करें ,
चलो वक़्त के हर लम्हें में एक पूरी ज़िन्दगी को तलाश करें !!

~ ♥ कल्प वर्मा ♥ ~

Tuesday, 3 June 2014



लखनऊ का प्रसिद्ध अलीगंज हनुमान मन्दिर ,
हम लोग अक्सर यहाँ जाते हैं , लेकिन कोई दिन निश्चित नहीं होता है कि कब जाएँ ,
मैं सभी दिनों को , पलों को शुभ ही मानता हूँ ,
हर दिन भगवान का हर पल भगवान का !!


Saturday, 12 April 2014


रोज़ सुबह ऑफिस टाइम की भीड़ को देखकर अक्सर ये सोचता हूँ 
कि सब लोग भागे चले जा रहे हैं " कागज़ " पलटने
देखो भाई किसने कितने "  कागज़ " पलटे ???
क्या जीवन जीने के लिए वास्तव में " कागजों " से इतना मोह जरूरी है ???

मुझे लगता है आज के इंसान ने अपने आप को बहुत सी चीजों पर खुद को डिपेंडेंट कर लिया है 
ऑफिस में हर तरफ़ या तो कागज़ हैं या मशीने हैं 

ज़िन्दगी शायद ये नहीं है जो हम जीते हैं ,
या शायद जो हम जीना चाहते हैं खुद को पता नहीं है ,
कोई भी मशीन या कागज़ हमें प्यार , सुकूं , चैन  नहीं दे सकता ,
जिसे हम सब चाहते हैं !!

हा हा हा पहली बार कुछ लिखा है पता नहीं कैसा है ???, क्या लिखा है ???
लेकिन लिख कर सुकून जरूर मिला है 
सभी पढ़ने वालों का शुक्रिया … 
 
~ ♥ कल्प वर्मा ♥ ~ 

Friday, 28 February 2014

!! ये बीते हुए लम्हें !!



!! ये बीते हुए लम्हें !!

लोग कहते हैं ज़िंदा लम्हों में ही ज़िन्दगी है ,
बीते हुए लम्हें तो कब के मर गये ,

मैंने जो कागज़ों पे लिख दिये , तो साँस लेते हैं ,
तन्हाई में कभी आवाज़ दी , तो बात करते हैं ,
पास बुलाया तो गले लग के रोते हैं ,
थपकियाँ देके सुलाया कभी , तो रात सो गई ,
कभी रुलाया तो कभी हँसाया भी बहुत ,

ये बीते हुए लम्हें , कभी बीतते नहीं ,
शायद कभी मरते नहीं , जिस्म सो जाता है ,
और ♥ कल्प ♥ हर लम्हें की " रूह " साँस लेती है !!

~ ♥ कल्प वर्मा ♥ ~ 

Wednesday, 12 February 2014

दिन भर धूप में जलता रहा सूरज



दिन भर धूप में जलता रहा सूरज ,
हथेलियों तले जो ढका , तो थोड़ा आराम आया ,

वक़्त ने पार कर ली अपनी सारी हदें ,
उनकी ज़ुल्फों तले जो शाम ढली , तो थोड़ा आराम आया ,

अंधेरे डराते  रहे रात भी जागती रही तन्हा ,
ज़िंदा लम्हों को जो याद किया , तो थोड़ा आराम आया ,

भागते - दौडते उलझनों में ग़ुजरते रहे रास्ते ,
सितारों की चादर ओढ़ के ♥ कल्प ♥ जो सोये , तो थोड़ा आराम आया !!

~ ♥ कल्प वर्मा ♥ ~