Saturday 12 April 2014


रोज़ सुबह ऑफिस टाइम की भीड़ को देखकर अक्सर ये सोचता हूँ 
कि सब लोग भागे चले जा रहे हैं " कागज़ " पलटने
देखो भाई किसने कितने "  कागज़ " पलटे ???
क्या जीवन जीने के लिए वास्तव में " कागजों " से इतना मोह जरूरी है ???

मुझे लगता है आज के इंसान ने अपने आप को बहुत सी चीजों पर खुद को डिपेंडेंट कर लिया है 
ऑफिस में हर तरफ़ या तो कागज़ हैं या मशीने हैं 

ज़िन्दगी शायद ये नहीं है जो हम जीते हैं ,
या शायद जो हम जीना चाहते हैं खुद को पता नहीं है ,
कोई भी मशीन या कागज़ हमें प्यार , सुकूं , चैन  नहीं दे सकता ,
जिसे हम सब चाहते हैं !!

हा हा हा पहली बार कुछ लिखा है पता नहीं कैसा है ???, क्या लिखा है ???
लेकिन लिख कर सुकून जरूर मिला है 
सभी पढ़ने वालों का शुक्रिया … 
 
~ ♥ कल्प वर्मा ♥ ~